Book (मधुमेह)

मधुमेह: - डॉ प्रताप नारायण मिश्र

ये छोटी सी पुस्तिका 1996 में इस क्लिनिक को शुरू करते समय डॉ प्रताप नारायण मिश्र द्वारा लिखी गयी | जिसका प्रकाशन श्रीमती मधुलिका मिश्र के द्वारा किया गया | इस पुस्तिका को अपने सभी पंजीकृत व्यक्तियों को मधुमेह के बारे में सामान्य जानकारी के लिए दिया जाता है | साथ में एक आहार तालिका भी उस व्यक्ति की सारी बातो का ध्यान में रख कर दिया जा रहा है |

साथ में दी गयी आहार तालिका डायबेटिज़ के किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि आपके लिए तैयार की गयी है जो सामान्यतः अगले छ: महीने तक के लिए है | उसके बाद इस आहार तालिका में आपके लिए परिवर्तन की आवश्यकता पड़ सकती है | अत: छ: महीने बाद इसमें संभावित परिवर्तन के लिए संपर्क करें |

आहार तालिका में रोटी, चावल एवं अन्य भोजन निम्न वजन एवं माप के अनुसार है |

  • रोटी या स्लाईस ब्रेड,चावल,दाल,दूध,दही,आहार तालिका के अनुसार लें |
  • रोटी,स्लाईस ब्रेड, दाल इत्यादि में घी या मक्खन दिनभर में बताये गये तेल घी के सीमा के अन्दर ही लें |
  • सलाद - सलाद में टमाटर ,गाजर,खीरा,ककरी,मूली,प्याज,सलाद पत्ता प्रयाप्त मात्र में ले सकते है |
  • डायबेटिज़ के व्यक्ति करीब-करीब वे सभी भोजन ले सकते हैं जो सामान्यतः कोई भी व्यक्ति लेता है बशर्ते वो भोजन उस व्यक्ति के ऊँचाई,वजन, उम्र ,के अनुसार समुचित हो एवं आवश्यकतानुसार व्यक्ति को सामान्य वजन के आस-पास रखें एवं सभी आवश्यकता की पूर्ति करे, वह सबसे अच्छा भोजन है |
  • डायबेटिज़ के व्यक्तियों के लिए भोजन को मुख्यतः तीन भागों में बटा जा सकता है :-
    • सामान्यतः नहीं खाने योग्य भोजन:- चीनी, गुड, मधु, ग्लूकोज, मिठाई, चौकलेट, तेल वाले आचार, शरबत, पेस्ट्री, केक, आइसक्रीम,जाम, जेली, मीठे, पेय पदार्थ, होर्लिक्स, बौर्न्विता, इत्यादि |
    • प्रयाप्त मात्रा में खाने योग्य भोजन:- हरी सब्जियां, सलाद, टमाटर, गाजर, खीरा, ककरी, मूली, प्याज, सलाद पत्ता इत्यादि |
    • अन्य सभी भोजन:- चिकित्सक की सलाह से बताये गए समय एवं मात्रा के अनुसार ले सकते हैं |
  • उपवास न करें |
  • रात्रि में सोने से ठीक पहले अंतिम आहार लें एवं सुबह उठने के बाद यथासंभव जल्द से जल्द प्रथम आहार लें ताकि रात्रि उपवास का समय ज्यादा हो न सकें |
  • सलाह के अनुसार आहार समयानुसार लेते रहें | डायबेटिज़ के व्यक्ति को कुछ-कुछ अंतराल पर भोजन की आवश्यकता होती रहती है |
  • जलपान के बाद उस समय तक मूख्य भोजन न लें जबतक की ऐसा निर्देश न दिया गया हो |
  • छोटी कटोरी दाल के बदले ½ कटोरी सोयाबीन ले सकते हैं | मांसाहारी व्यक्ति 1 कटोरी दाल के बदले में रहू - 3 पीस या झींगा मछली -8-10 पीस (100 ग्राम) या छोटी मछली -25 ग्राम या चिकेन -1 बड़ा पीस या मीट - 3 पीस या अंडा -1 पीस ले सकते हैं परन्तु मीट या अंडा सप्ताह में एक या दो बार से ज्यादा न लें |
  • दूध या दही या दूध से निर्मित अन्य पदार्थ की मात्रा जो बताई गयी है,वह गाय की है | उसके बदले टोंड मिल्क ले सकते हैं | 1 कप दूध (125ml के बदले में) 125 ग्राम दही या 25 ग्राम छेना या 25 ग्राम खोआ या 2 ग्लास (500ml) मट्ठा ले सकते हैं |
  • भोजन में नमक का प्रयोग ज्यादा न करें | दिन भर में यह मात्रा 3 से 5 ग्राम तक से ज्यादा नहीं होनी चाहिए अर्थात सामान्य मात्रा में नमक का व्यवहार करें एवं अलग से नमक लेकर नहीं खाएं | उक्त रक्तचाप रहने पर नमक की मात्रा चिकित्सक के सलाह के अनुसार लें |
  • खाने के तेलों में सबसे उपयुक्त सरसों तेल एवं शुध घी है | इनका व्यवहार बताये गये सीमा के अन्दर होना चाहिए |
  • कुछ सूखे मेवा - जैसे मूंगफली ,काजू ,अखरोट ,बादाम के पंद्रह ग्राम में दो चाय के चम्मच के बराबर तेल होता है, यथासंभव इनका सेवन न करें | उनको खाने में इस बात का ध्यान रखें की दिनभर में बताये गये तेल की सीमा का उल्लघन नहीं होता हो |


कुछ आवश्यक जानकारियां एवं सलाह :-

  • डायबेटिज़ के व्यक्ति को विभिन्न स्थितियों में जैसे कोई अन्य बीमारी हो जाने, डायबेटिज़ के अन्य कम्पलीकेसन्स हो जाने,पतला दस्त,घाव इत्यादि में खाने वाली दवाओं या इंसुलिन की मात्रा के बदलाव की आवश्यकता पड़ती रहती है | अत: किसी भी असामान्य स्थिति में या कुछ अन्तराल पर चिकित्सक से परामर्श लेते रहें |
  • बचपन या युवावस्था में होने वाले डायबेटिज़ से या किसी दूसरी बीमारी से होने वाले डायबेटिज़ में ज्यादा सावधानी की आवश्यकता पड़ती है|
  • इसी प्रकार डायबेटिज़ की महिलाओं को या गर्भावस्था के समय डायबेटिज़ हो जाने पर बहुत ज्यादा सावधानी की आवशयकता होती है ताकि जच्चा एवं बच्चा सुरक्षित एवं सवास्थ रह सके| पहले से डायबेटिज़ रहने पर गर्भधारण पूर्व निर्धारित ही होना चाहिए एवं गर्भधारण के कुछ पहले से ही एवं पुरे गर्भावस्था के दौरान डायबेटिज़ पुर्णतः नियंत्रण में रहना चाहिए | सामान्यतः महिला चिकित्सक की सलाह से गर्भधारण को रोकने हेतु उपाए आवश्यक है एवं गर्भधारण की इच्छा होने पर डायबेटिज़ को पूर्ण नियंत्रित रखते हुए पूर्व निर्धारित कार्यकर्म के अनुसार ही गर्भधारण होने चाहिए | इस स्थिति में चिकित्सक के द्वारा बताये गये सलाह को विशेष रूप से ध्यान देकर पालन करें |
  • व्यायाम इलाज का एक प्रमुख अंग है | सामान्यत: डायबेटिज़ व्यक्तियों के लिए टहलना सबसे अच्छा व्यायाम है, परन्तु चिकित्सक की राय के अनुसार ही टहलें | असामान्य परिस्थिति को छोड़कर, टहलने का समय एवं दुरी निश्चित एवं नियमित रहनी चाहिए | अचानक ज्यादा श्रम से बचना चाहिए | अन्य व्यायाम जैसे साइकिलिंग, जोग्गिंग या तैराकी बिना चिकित्सक की सलाह के न करें |
  • शरीर में कहीं भी कटे,जले या घाव, खासकर पैरों में घाव का धयान देकर तुरंत इलाज करवाएं | साथ ही इन विशेष स्थितियों में चिकित्सक से संपर्क करें ताकि खानेवाली दवा या इंसुलिन की मात्रा इत्यादि में आवश्यक परिवर्तन किया जा सके |
  • अचानक ज्यादा श्रम करने या उपवास करने से बचें | इससे हाईपोग्लाइसेमिक अटैक (कम ब्लड शुगर हो जाने) का खतरा रहता है | इससे व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है | जो खतरनाक है | हाईपोग्लाइसेमिया के लक्षण जैसे ज्यादा पसीना आना, चक्कर आना, कमजोरी, सरदर्द, कपकपी, पेट का खाली खाली लगना इत्यादि है | इन लक्षणों के महसूस करते ही कुछ तरल पदार्थ जैसे दूध, फल का रस, मट्ठा या बिस्किट इत्यादि में से किसी एक का तुरंत सेवन करना चाहिए, लक्षण के ज्यादा होने या ठीक नहीं होने की स्थिति में चीनी या ग्लूकोस का शरबत तुरंत लेना चाहिए | उससे भी ठीक नहीं होने या बेहोश हो जाने की स्थिति में घर के सदस्यों या अन्य परिचितों को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए की डायबेटिज़ के उस व्यक्ति को तुरंत 50% ग्लूकोस - 50cc , iv धीरे धीरे दे दिया जाये एवं चिकित्सक से तुरंत संपर्क किया जाये | डायबेटिज़ के जो भी व्यक्ति खाने वाली दवा या इंसुलिन पर हैं उन्हें अपने पास (Glucagon 1 mg ) हमेशा रखना चाहिए ताकि बेहोश होने की स्थिति में अगर 50% ग्लूकोस - 50 cc i.v धीरे धीरे देने वाला कोई उपयुक्त जानकर व्यक्ति नहीं मिल सके तो घर के किसी सदस्य द्वारा Glucagon 1 mg चमड़े के नीचे या मांस में दिया जा सके | सामान्यत: इन उपचारों से मरीज तुरंत होश में आ सकते है | होश में नहीं आने पर तत्काल चिकित्सक से संपर्क करें या किसी निकटस्थ अस्पताल में दाखिल करवाएं |
  • यात्रा करने के समय अपने पास चोक्लेट रखें ताकि हैपोग्लैसेनिक अटैक से बचा जा सके या ठीक किया जा सके | ऐसी स्थिति में तुरंत चोक्लेट लें |
  • अपने मित्रों, परिचितों या सम्बन्धियों से अपने डायबेटिज़ को छिपाने की कोशिश न करें | अगर उन्हें इस बात का एवं हो रहे इलाज (खाने वाली दवा या इंसुलिन और उनकी मात्रा) की जानकारी रहेगी तो किसी संभावित ह्य्पोग्ल्य्केमिक अटैक या अन्य अचानक होने वाले कम्पलीकेसन्स का उपचार करना किसी चिकित्सक के लिए सुविधाजनक रहेगा |
  • जहाँ तक संभव हो, घर के बहार जाने पर अपने साथ डायबेटिज़ कार्ड जुरूर रखें, जिसमे आपके हो रहे उपचार के बारे में सारांश में जानकारी दर्ज हो |
  • सिगरेट, बीड़ी या किसी प्रकार का तम्बाकू स्वास्थ के लिए वैसे भी हानिकारक है | डायबेटिज़ के व्यक्तियों में इसके द्वारा होनेवाली हानि की क्षमता ज्यादा रहती है, अत: इनसे बचें | अल्कोहल और उसकी मात्रा हेतु चिकित्सक से सलाह लें |
  • निर्देशानुसार समय-समय पर ब्लड शुगर की जाँच अवश्य कराएँ | फास्टिंग की स्थिति में 80 -120 mg/dl एवं खानेवाली दवाओं या / और इंसुलिन लेते हुए पोस्त्प्रन्दिअल (भोजनोपरांत) ब्लड शुगर 100 -140 mg/dl को अच्छा नियंत्रण माना जाता है एवं यह आपका लक्ष्य रहना चाहिए | परन्तु भोजन्प्रांत ब्लड शुगर हर हालत में 180 mg/dl से निचे रखने का प्रयत्न करना चाहिए |उपरोक्त लक्ष्य से कम या ज्यादा ब्लड शुगर रहने पर चिकित्सक से संपर्क करें|
  • डायबेटिज़ के नियंत्रण को देखने हेतु फास्टिंग ब्लड शुगर की जाँच रात के 8 से 12 घंटे तक के फास्टिंग के उपरांत ही होना चाहिए | इस अवधि में पानी पिया जा सकता है | ये जाँच तभी कराएँ जबकि पिछले दिनों में आप निर्देशानुसार भोजन एवं बताई गयी दवा या इंसुलिन लगातार लेते रहे हों | उस दिन सुबह का बिस्किट, चाय या अन्य कोई आहार न लें | फास्टिंग ब्लड शुगर का सेम्पल देने के बाद गोलियां इंसुलिन जैसा की रोज आप अगर लेते हैं, तो लें | फिर निर्देशानुसार समय के बाद नाश्ता(अल्पाहार) लें | साथ में नाश्ता के समय की गोलियां या इंसुलिन जैसा की रोज अगर लेते हैं | फिर उसके 2 घंटे के बाद या निर्देशानुसार पोस्त्प्रन्दिअल ब्लड सूगर की जाँच कराएँ |
  • डायबेटिज़ को बहुत हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए | अगर इसे नियंत्रण में नहीं रखा जाये तो कुछ अचानक कम्पलीकेसन्स के अलावे धीरे-धीरे यह बीमारी आंख, किडनी, रक्त्धम्नियाँ, ह्रदय इत्यादि को कड़ी क्षति पहुँचती है | अत: नियंत्रण एवं अन्य अंगों पर इसकी क्षति जानने एवं उसके उपचार हेतु समय-समय पर सलाह के अनुसार जाँच करवाते रहें |
  • सामान्यत: एक बार नियंत्रण में आ जाने पर एक महीने के अन्तराल पर फास्टिंग एवं पोस्त्प्रन्दिअल ब्लड सूगर, हरेक तीन महीने के अन्तराल पर गलाईकडेट हेमोग्लोबिन एवं हर एक वर्ष के अन्तराल पर पेशाब का माइक्रोअल्बियुमिनूरिया लिपिड प्रोफाइल, ह्रदय की जाँच एवं आँखों की पूर्ण जांच करनी चाहिए | सलाह के अनुसार अन्य जांच भी करवाते रहें |
  • डायबेटिज़ को नियंत्रण में रखना बहुत कठिन नहीं है | नियंत्रण में रखकर आप अधिकांश समस्याओं से बच सकते हैं | नियंत्रण में रखने हेतु आपके प्रयास की आवश्यकता है |


पैरों की देखभाल :

  • डायबेटिज़ के व्यक्तियों को अपने पैरों की विशेष देखभाल की आवश्यकता है | पैरों का एक छोटा घाव बहुत बड़ा रूप धारण कर सकता है जिससे तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पर सकता है एवं यह पैरों एवं जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है |
  • सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा डायबेटिज़ के व्यक्तियों को पैरों में छोटे मोटे कटे, जले या चुभन को महसूस करने को असमर्थ हो सकती है | साथ ही ब्लड सूगर अगर नियंत्रण में नहीं हो तो शारीरिक प्रतिरोध शारीरिक प्रतिरोध शक्ति भी कम होती है, एवं छोटे घाव भी उग्र रूप धारण कर लेते हैं | अत: ब्लड सूगर को नियंत्रण में रखना एवं पैरों की विशेष देखभाल अत्यंत आवश्यक है |
  • अपने पैरों का दिन भर में कम से कम एक बार पूर्ण निरक्षण करें | इस बात को सूक्ष्मता से देखें की कहीं कोई कटा,जला या क्रैक है की नहीं | अगर द्रिष्टि कमजोर हो तो घर के दुसरे सदस्य की सहायता लें |
  • दिनभर के काम के बाद पैरों को गुनगुने पानी से अच्छी तरह धोएं | उसे ठीक से साफ तौलिये से पोछने के बाद ही पैरों का निरीक्षण करें | तौलिये से पोछने में रगड़ने के स्थान पर सुखाने का कम करें | यह धयान रखें की उँगलियों की बिच गासों को भी जुरूर सुखाया जाय |
  • अपने पैरों को नरम जुरूर रखें | सूखे पैरों में क्रैक होने की संभावना अधिक रहती है | नरम रखने हेतु तेल या वैसिलिन का प्रयोग करें, धयान रखें की वैसिलिन दो अँगुलियों के बीच या गासों में न लगे |
  • अपने घर में भी नंगे पैर न चलें, घर में पहनने हेतु स्लीपर का ऐसा चुनाव करें जो आरामदेह हो एवं पैरों को कहीं भी दबाता, काटता या किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचता हो |
  • घर के बाहर पहनने हेतु जूते, चप्पल या सैंडिल का चुनाव ऐसा करें जो पैरों को दबाव नहीं देते हों | चमड़े या कपडे के जूते या स्पोर्ट्स शु अच्छे होते हैं | सामने से नुकीले जूते कभी व्यवहार में न लावें| चप्पलों या सैंडिल का चुनाव उस प्रकार का करें जिनमे अंगूठे को घुसाने की अलग व्यवस्था नहीं हो | अंगूठे में अलग घुसने वाले जगह चाहे चप्पल या सैंडिल अक्सर अंगूठे या उसके पास वाली अंगुलियाँ पर चोट पहुंचाते हैं |
  • दिनभर के काम या बैठने के बाद अक्सर पैरों की माप बढ़ जाती है | अत: सुबह के नाप के अनुसार ख़रीदे गये जूते अक्सर शाम को काटने या कष्ट देने लगते हैं | अत: यह प्रयास करें की जूते संध्या समय ही उस समय फिट बैठने वाले ख़रीदे जाएँ |
  • व्यवहार में लाने के पहले हमेशा यह सुनिश्चित कर लें की कहीं भी जूतों में कोई काँटी इत्यादि तो नहीं है, जो नुकसान पहुंचा सके |
  • जूतों को पहनने के पहले आपके पैर पानी में भींगे कदापि नहीं होने चाहिये, अच्छी तरह पानी के सूखने के बाद ही जूते पहनें, मोज़े ऐसे होने चाहिए जो बड़ा या छोटे नहीं हो | इसी प्रकार मोज़े के इलास्टिक ज्यादा कसे नहीं होने चाहिए | रोज धुले हुए मोजों का व्यवहार करें | सूती मोजों का व्यवहार सर्वोत्तम है |
  • जूते या चप्पल अपनी लचक 6 से 8 घंटे के व्यवहार के बाद खो देते हैं | अत: प्रयास करें कि 6 से 8 घंटे बाद दूसरा जूता या चप्पल प्रयोग में लाया जाये| कभी भी लगातार एक ही जूता या सैंडिल प्रयोग में न लायें | बदल-बदल कर प्रयोग में लाने से पैरों में एक जगह पर दबाव नहीं बन पायेगा | एक ही जगह बार-बार दबाव बनने से पैरों में घाव बनने की संभावना ज्यादा रहती है | बदलकर अलग-अलग तरह से जूते पहनने से दूसरा जूता या चप्पल दूसरी जगह दबाव बनाएगा तब तक पहले वाले दबाव जगह को आराम मिल जायेगा |
  • अपने नाखूनों को सदा सीधा काटें| भीतर की तरफ बढ़ने वाले नाख़ून घाव पैदा करते हैं| अगर दृष्टि में कमी हो तो नाख़ून काटने में किसी दुसरे की सहायता लें |
  • पैरों में किसी प्रकार का कटे,घाव इत्यादि का पता लगते ही तुरंत इलाज करवाएं एवं अपने चिकित्सक से परामर्श लें | तुरंत इलाज से समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है | किसी प्रकार का दबाव पैरों में रक्त प्रवाह को शिथिल करता है, अत: इससे बचें |
  • किसी प्रकार से पैरों में सूजन आने पर पूराने नाप के जूते या चप्पल न पहनें | सूजे हुए पैरों में पूराने नाप के जूते या चप्पल नुकसान पहुंचा सकते हैं | इस अवधि में नये स्लीपर, जो सूजे पैरों में नहीं कसे, ही पहनें |
  • डायबेटिज़ के व्यक्ति को पैर जलने पर तुरंत अहसास नहीं भी हो सकता है,अत: किसी गर्म स्थान जैसे - हीटर, मोटरसाईकिल के साईलेंसर इत्यादि के समीप पैर रखने में सावधानी बरतें | महसूस की जगह पर आंख से देख लें कि पैर कहीं जल तो नहीं रहा |
  • पैरों में हुए किसी वार्ट या कार्न को अपने से खुरेद कर ठीक करने की कोशिश न करें |


इन्सुलीन का रख रखाव एवं लेने का तरीका

  • खाने वाली दवा या इन्सुलीन खरीदते समय कैश मेमो ( रशीद ) अवश्य लें |
  • यह स्वयं जाँच कर लें कि पुर्जा में लिखा हुआ ही दवा या इन्सुलीन उसकी क्षमता है | साथ में यह भी सुनिश्चित कर लें कि एक्स्पैरी तारीख के अन्दर है | इन्सुलीन को यथासमभ्व फ़्रीज के डोर सेल्फ में भेजिटेबुल कम्पार्टमेंट के सामने रखें | इन्सुलीन को कभी भी फ्रीजर कम्पार्टमेंट (जहाँ बरफ जमता है ) या उसके सामने न रखें | जमने पर इन्सुलीन ख़राब हो जाता है | 2 से 8°C तापक्रम पर इन्सुलीन रखने से एक्स्पैरी तारीख तक इन्सुलीन ठीक रहता है | फ़्रीज के उपलब्ध नहीं रहने पर घर में किसी ऐसी जगह जो सूखा एवं ठंढा हो एवं जहाँ सूर्य किरणों सीधी नहीं पड़ती हो, रख सकते हैं| ऐसी जगह रखने पर करीब 45 दिनों तक इन्सुलीन ख़राब नहीं होता है |
  • इन्सुलीन लेने हेतु बताये गये सिरिंज और निडिल का ही व्यवहार करें | यह हमेशा धयान में रखें कि इन्सुलीन कि क्षमता और सिरिंज का नाप एक, अर्थात अगर आप ऐसा इन्सुलीन व्यवहार में ला रहें हैं जो 40 units/ml,है तो सिरिंज भी 40 units/ml, का होना चाहिये | अगर आप ऐसा इन्सुलीन व्यवहार में ला रहें हैं जो 100 units/ml, है तो सिरिंज भी 100 units/ml.का होना चाहिए |
  • इन्सुलीन देने वाले व्यक्ति को अपने हाथ को साबुन से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए |
    इन्सुलीन लेने के पर्याप्त पहले (करीब 15 - 20 मिनट) इन्सुलीन को फ़्रीज से निकाल लें ताकि लेने के समय यह कमरे के सामान्य तापक्रम पर आ जाये |
  • इन्सुलीन लेने के पूर्व वायल को अंगूठे और तर्जनी अंगुली के सहारे पकड़कर 10 बार उल्टा-पुल्टा करें ताकि वायल के अन्दर का इन्सुलीन आपस में घुलमिल जाये | ध्यान रखें कि इन्सुलीन को झकझोरें नहीं |
  • इन्सुलीन लेने हेतु शारीर का ऐसा कोई भी भाग जहाँ पर्याप्त मात्रा में मांस हो, अच्छी जगह है | परन्तु इन्सुलीन मांस में नहीं परन्तु चमड़े के नीचे पड़ना चाहिए | उपयुक्त स्थलों में - जांघ, बाहं, या उपरी भाग (डेल्टवायद मांस के पास), उपरी पेट का दिवार एवं कमर के नीचे (ग्लुतियल भाग) है |
  • जहाँ पर इन्सुलीन देना है, उसे अच्छी तरह साफ कर लें | इसके लिए स्प्रीट का प्रयोग न कर पानी का प्रयोग कर सकते हैं | लगातार स्प्रीट प्रयोग करना चमरे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है | पानी में उबला हुआ रुई का फाहा जो ठंडा हो गया है-सबसे उपयुक्त है |
  • जितना युनिट इन्सुलीन लेना है, उतने युनिट तक सिरिंज के पिस्टन को बाहर खींचे ताकि उसमे हवा भर जाये | अब यह सुनिश्चित करने के बाद कि आपका इन्सुलीन वायल वही है जो आपको उस समय के लिए सलाह दिया गया है, इन्सुलीन के वायल के रबर को स्प्रीट के फाहे से साफ़ कर सीधे वायल में नीडल को उसी में रहने दें | अब वायल को सिरिंज सहित उलट कर, उतना युनिट इन्सुलीन नीकाल लें, जितना देना है | नीडल को वायल से अलग कर लें एवं वायल रख दें |
  • अगर आपको nph एवं regular इन्सुलीन एक साथ देने की सलाह दी गयी है तो निम्न प्रकार से मिलाएं | दोनों इन्सुलीन की वायल को टेबुल पर सीधा रखकर स्प्रीट के फाहे से, वायल के रबर को साफ़ कर दें |
  • जितना युनिट nph लेना है, सिरिंज में उतनी हवा भरकर nph के सीधे वायल में नीडल डालकर उतनी है हवा भर दें | नीडल को बहार निकाल लें | फिर जितना युनिट regular लेना है उतना युनिट सिरिंज में हवा भरकर regular के सीधे वायल में नीडल डालकर उतनी हवा भर दें एवं नीडल को उसी में रहने दें| regular वायल एवं सिरिंज को उलट कर, सिरिंज में उतना युनिट regular इन्सुलीन निकाल लें| नीडल को regular वायल से अलग कर regular वायल अलग रख दें | अब nph वायल को उलटकर नीडल उसमे घुसाएँ एवं regular का युनिट + nph का युनिट तक इन्सुलीन निकाल कर,nph वायल को रख दें| सिरिंज को दो चार बार उल्टा - पुल्टा करें ताकि दोनों इन्सुलीन आपस में मिल जाएँ |
  • अब सिरिंज को इस प्रकार पकडे ताकि निडल का नुकीला भाग ऊपर रहे | देख लें की हवा का बुलबुला सिरिंज में तो नहीं है | अगर है तो दुसरे हाथ की अंगुली से धीरे धीरे सिरिंज पर थप थपा दें एवं पिस्टन को धीरे से ठेलें जबतक की बुलबुला बाहर नहीं निकल जाये|
  • बुलबुले के निकल जाने पर, अब चयनित स्थल के चमड़े को दुसरे हाथ के अंगूठे के सहारे पकड़े एवं हल्का सा ऊपर उठा लें | अब निडल को उस पकड़े हुए चमड़े में पूरा घुसा दे | धयान रहे की आपका सिरिंज एवं निडल शरीर से करीब 90 डिग्री के कोण पर हो | इस प्रकार आपका निडल चमड़े की नीचे (Subcutaneous) रहेगा | पिस्टन को हल्का सा पीछे की तरफ खींचकर आश्वस्थ हो लें की सिरिंज में खून तो नहीं आ रहा अर्थात निडल किसी रक्त धमनी में तो नहीं है, हालाकिं इसकी संभावना नहीं के बराबर होती है | अब पिस्टन को आगे की ओर धीरे-धीरे धकेलें | पूरा इन्सुलीन ले लेने के बाद निडिल शरीर से निकालकर तत्काल दुसरे हाथ की अंगुली या रुई को वहां रख दें एवं थोड़ी देर हल्का दबाये रखें | कुछ देर बाद रुई या अंगुली को हटा लें | इन्सुलीन वायल को अपने स्थान पर पुन: रख दें | इन्सुलीन सिरिंज के पीछे वाले ढक्कन एवं आगे निडिल का ढक्कन भी ठीक ढंग से लगाकर रख दें| व्यवहार में लाये जा रहे सिरिंज का भी यथासंभव फ़्रीज में ही इन्सुलीन के साथ रखें |
  • इस पूरी प्रक्रिया के समय यह धयान रखें की निडल को हाथ से कभी न छुएं |
  • इन्सुलीन को लगातार एक ही बिंदु पर न लें | चयनित स्थान पर एक केंद्र बिंदु मानकर उसके चरों तरफ गोलाई में इन्सुलीन लेने के स्थान को बदलते रहें | स्थान पूरा हो जाने पर उसी भाग या अन्य जगह एक नये केंद्र बिंदु के आसपास शुरू करें |
  • स्वयं इन्सुलीन लेने या घर के किसी सदस्य द्वारा देने के पहले किसी प्रशिक्षित कम्पाउंदर या क्लिनिक में ठीक से प्रशिक्षण प्राप्त कर लें | उसके बाद ही स्वयं इन्सुलीन ले या घर के सदस्य को देने के लिए कहें |
  • इन्सुलीन सिरिंज को कभी भी पानी से या किसी तरल पदार्थ से न धोएं |
  • इन्सुलीन पेन का व्यवहार करने के पहले ठीक से व्यवहार करने का प्रशिक्षण प्राप्त कर लें |
  • इन्सुलीन लेने के बाद खुजली या अन्य किसी प्रकार की परेशानी हो तो चिकित्सक को इसकी सुचना तत्काल दें |
  • इन्सुलीन सिरिंज एवं खाने वाली दवाओं को बच्चों के पहुँच के बहार रखें |
  • ग्लुकागोन (1mg) का वायल हमेशा उपलब्ध रखें ताकि बेहोश हो जाने (हैपोग्लोइसेमिक अटैक) की स्थिति में अगर 50 प्रतिशत ग्लूकोज 50 cc i.v धीरे धीरे देने वाला कोई उपयुक्त जानकार व्यक्ति नहीं उपलब्ध हो सके तो घर की किसी सदस्य द्वारा ग्लूकागोन 1 mg Subcutaneously या Intramusculary (चमड़े के नीचे या मांस में ) दिया जा सके |
  • 25 % ग्लूकोस का 25 cc का दो एम्पुल एवं 50 cc सिरिंज हमेशा उपलब्ध रखें |
  • हाईपोगलैसेमिया होने पर इसकी सुचना तत्काल चिकित्सक को दें ताकि इन्सुलीन की मात्रा में आवश्यक फेरबदल किया जा सके |
  • यात्रा के समय इन्सुलीन वायल को कार के ग्लोब कम्पार्टमेंट या इंजन के आसपास न रखें| इसी प्रकार विमान के लगेज कम्पार्टमेंट इन्सुलीन न रखें | इन्सुलीन वायल को हमेसा अपने साथ बैग में रखें एवं इन्सुलीन वायल को किसी बिजली उपकरण या चूल्हे के पास कदापि नहीं रखें |